Friday, September 11, 2009
**नज़्म**
तुम समझती रही और में लिखता रहा!
सफ़र चलता रहा जिंदगी मौत का,
तुम भी रोती रही मैं भी रोता रहा!
खलल होता रहा हर इक साँस से,
तुम पिघलती रही और में जलता रहा!
मेरा नाम लिख तुम मिटती रही,
आंख बहती रही तुमने कुछ न कहा!
ज़िक्र होता रहा इश्क की बात का,
तुम न करती रही और में तड़पता रहा !
छुपा कर दिल में हर इक राज़ को,
तुम तो चलती रही पर मैं ठहरा रहा !
नज़्म बनती रही, लोग पड़ते रहे,
तुम समझती रही और में लिखता रहा!
Sunday, August 30, 2009
रोज़-रोज़
महरूम,सिसकती,तड़पती,लड़ती है रोज़-रोज़ !
हाँ पगली है वो लड़की ख़त लिखती है रोज़-रोज़ !!
जिस्म छोड़ती है अक्सर निगाह में हुजुर के !
रूह आती है उसकी मिलती है रोज़-रोज़ !!
मजबूर होकर बोली रुख मोड़ दो हवा का !
मैं साँस लेती हूँ तो याद आती है रोज़-रोज़ !!
मासूमियत से लड़कर बोली हुजुर से !
मैं छोड़ कर उसको नहीं सोती रोज़-रोज़ !!
सब्र टूटा इश्क का तो पैगाम भेजा लिख के !
तुम ख्वाब देखो कोई मैं आउंगी रोज़-रोज़ !!
बहुत मजबूर होकर बोली तुम बेवफा नहीं !
रोते हो साथ मेरे जब रोती हूँ रोज़-रोज़ !!
प्रतिभा पलायन क्यों ?
Wednesday, August 5, 2009
***ग़ज़ल बीती***
अपनी पलकों को थोडा झुका लीजिये !
जब कोई चेहरा दिल को सताने लगे,
आईने से दूरी बड़ा लीजिये !
धड़कने साथ हो पर परायी लगे,
मुस्कुराने का फिर तुम मज़ा लीजिये !
जब कदम दिल की बातों को सुनने लगे,
बस आँखों से बातें किया कीजिये !
जब कोई रोज़ खूआबों में आने लगे,
छोडिये नींद प्यार का मज़ा लीजिये !
बेचेनी जब हद से गुजरने लगे,
बीते लम्हों को तुम गुनगुना लीजिये !
हो अगर तुम मोहोब्बत के इस दौर में,
प्यार से ये ग़ज़ल गुनगुना लीजिये !!
Friday, July 24, 2009
**गुरुर**
जो बदली वक़्त ने करबट तो शीशे छूट जायेंगे !!
जो शौक है तुमको दिलों से खेलने का खूब !
कभी जब गिद्ध लोंचेंगे तो सपने टूट जायेंगे !!
बुलंदी देर तक किस के हिस्से में आई है !
कभी जब पैर फिस्लेंगे घमंड को तोड़ जायेंगे !!
अभी तुम जोश में होतो छु कर देखलो अम्बर !
हाँ तुम लौट आओगे कदम जब चोट खायेंगे !!
खाक के संग हैं सिकंदर आज भी कितने !
ये तुम तब मानोगे जब अपने छोड़ जायेंगे !!
नितिन{नादान}
Thursday, July 23, 2009
बड़े हुनरमंद हैं बुजुर्ग देखो.........
बड़े हुनरमंद हैं बुजुर्ग देखो.........
प्यार की सुनी बातों को हंस कर टालते तो हैं!
तमाम बातें राज़ की वो करते अहतियात से हैं,
कहकती महफिलों में जब अदब से खांसते वो हैं!
सिसकते हैं,तड़पते हैं,असर वो देखते भी हैं,
खलिश दिल की खला को वो बखूबी मानते तो हैं !
करते हैं बेशक बात मोह्हले की कहानी की,
हाँ हाल-ऐ-दिल ज़वानी का बखूबी जानते तो हैं !
कई बनते हैं बड़े पंडित,नवाजी चार पहर के,
मगर ज़वानी की कई कसमे अभी तक मानते तो हैं !
ज़वानी में कटी रातों के हर एक लम्हे को ,
छूटतीं सांसों में भी वो दर्द से बांटते तो हैं !
बड़े हुनरमंद हैं बुजुर्ग देखो.........
प्यार की सुनी बातों को हंस कर टालते तो हैं!
Tuesday, July 21, 2009
अहसास
जैसे दाना लेने गया पंछी और शाम हो गयी!!
रहबर ने अता की जो भूख पेट की !
फकीरों की पाक झोली बदनाम हो गयी !!
हुस्नवाले जब उतरे खुबसूरत लिवाज़ में !
भरी महफिल ईमान की बीरन हो गयी !!
खुद मारा है औरत ने बेटी को कोख में !
उसके गुनाह से माँ कोई बदनाम हो गयी !!
सियासत में फसे मोहरे हम देखते रहे !
सियासतदारों से मिटटी देश की बदनाम हो गयी !!
बची मिटटी से बने लोग ज़ल्द्वाज़ी में गड़ दिए !
तू ही देख मेरे मौला तेरी मिटटी बदनाम हो गयी !
नितिन{नादान}