Sunday, August 30, 2009

रोज़-रोज़

महरूम,सिसकती,तड़पती,लड़ती है रोज़-रोज़ !

हाँ पगली है वो लड़की ख़त लिखती है रोज़-रोज़ !!

जिस्म छोड़ती है अक्सर निगाह में हुजुर के !

रूह आती है उसकी मिलती है रोज़-रोज़ !!

मजबूर होकर बोली रुख मोड़ दो हवा का !

मैं साँस लेती हूँ तो याद आती है रोज़-रोज़ !!

मासूमियत से लड़कर बोली हुजुर से !

मैं छोड़ कर उसको नहीं सोती रोज़-रोज़ !!

सब्र टूटा इश्क का तो पैगाम भेजा लिख के !

तुम ख्वाब देखो कोई मैं आउंगी रोज़-रोज़ !!

बहुत मजबूर होकर बोली तुम बेवफा नहीं !

रोते हो साथ मेरे जब रोती हूँ रोज़-रोज़ !!