महरूम,सिसकती,तड़पती,लड़ती है रोज़-रोज़ !
हाँ पगली है वो लड़की ख़त लिखती है रोज़-रोज़ !!
जिस्म छोड़ती है अक्सर निगाह में हुजुर के !
रूह आती है उसकी मिलती है रोज़-रोज़ !!
मजबूर होकर बोली रुख मोड़ दो हवा का !
मैं साँस लेती हूँ तो याद आती है रोज़-रोज़ !!
मासूमियत से लड़कर बोली हुजुर से !
मैं छोड़ कर उसको नहीं सोती रोज़-रोज़ !!
सब्र टूटा इश्क का तो पैगाम भेजा लिख के !
तुम ख्वाब देखो कोई मैं आउंगी रोज़-रोज़ !!
बहुत मजबूर होकर बोली तुम बेवफा नहीं !
रोते हो साथ मेरे जब रोती हूँ रोज़-रोज़ !!