Sunday, August 30, 2009

रोज़-रोज़

महरूम,सिसकती,तड़पती,लड़ती है रोज़-रोज़ !

हाँ पगली है वो लड़की ख़त लिखती है रोज़-रोज़ !!

जिस्म छोड़ती है अक्सर निगाह में हुजुर के !

रूह आती है उसकी मिलती है रोज़-रोज़ !!

मजबूर होकर बोली रुख मोड़ दो हवा का !

मैं साँस लेती हूँ तो याद आती है रोज़-रोज़ !!

मासूमियत से लड़कर बोली हुजुर से !

मैं छोड़ कर उसको नहीं सोती रोज़-रोज़ !!

सब्र टूटा इश्क का तो पैगाम भेजा लिख के !

तुम ख्वाब देखो कोई मैं आउंगी रोज़-रोज़ !!

बहुत मजबूर होकर बोली तुम बेवफा नहीं !

रोते हो साथ मेरे जब रोती हूँ रोज़-रोज़ !!

प्रतिभा पलायन क्यों ?

प्रतिभा पलायन क्यों ?करोडो की जनसंख्या से भरे इस देश में प्रथिभायें निरंतर जन्म लेती हैं और ख़त्म होती हैं !मगर आज अल्प हैं जो अपनी प्रतिभा का उपयोग समाज और देश के लिए करते हैं !बहुत बिचारने के बाद मन ये सोचने पर मजबूर है की आज का युवा परिवार,माँ-बाप,देश सब कुछ छोड़ कर चकाचौंध,बिलासिता,भव्यता की ओर दौड़ने का मन क्यों बना रहे हैं ?क्यों उन अनजानी खुशियों की तलाश में लगे हैं, जो सिर्फ पैसों से खरीदी जा सकती हैं !क्यों उन तमाम संस्कारों को छोड़ रहे हैं ! जिनका शयद इस दुनिया में कोई मोल नहीं ! आज बच्चा सोचने लायक होता है, तो उसकी सोच बिदेश जा कर रूकती है !वहीँ रहना है,वहीँ काम करना है............यहाँ कुछ नहीं,देश भ्रष्ट है,माँ-बाप की उम्र हो चुकी,यहाँ जिंदगी ख़त्म है,गरीबी है,बेकारी है,भूख है, आतंग्बाद है ...ऐसी तमाम बातें ले कर बच्चा युवा होता है,और अपना सब छोड़कर किसी दुसरे देश में जिंदगी बिताने का सपना आँखों में संजोता है ! हाँ ये सही है की उम्मीद के दामन से ही मंजिल को पाने का रास्ता मिलता है! लेकिन ये तो सही नहीं है की जिन्होंने आपको जन्म दिया,जिस मिटटी में खेल कर आप बड़े हुए,जिस पिता की ऊँगली के सहारे आप खड़े हुए,जिस भाई से आपने जिन्दगी सीखी,जिस देश से आपको पहचान मिली,जिस देस ने हजारों प्रतिभाओं को जन्म दिया, उन तमाम चीजों को दरकिनार कर आप संबेदनाओं की लाश पर पैर रख कर कई अपनों की उम्मीदों को चकनाचूर करके ऐसी दुनिया में पलायन कर जाये जहाँ अपनों के सुख दुःख सिर्फ सुनाई दें पर आप उस अहेसास को कभी समझ ही न पायें !आप अपने देश, अपने मुल्क की बुराईयाँ तो जी भर कर करें मगर जब उन बुरायिओं को दूर करने लायक बने,जब आपको अपनी प्रतिभा का बोध हो तो आप अपने आपको असह्य बोल कर जुम्मेदारी से मूह मोड़ कर पलायन कर जाएँ ! आखिर क्यों युवा ये नहीं सोचते के जो वो पराये देश में कर सकते हैं, वो अपने देश में भी कर सकते हैं, हम अपनी प्रतिभा से देश में रह कर देश को बना सकते हैं, बिगडे हालातों को सूधार सकते हैं! अपनी प्रतिभा को चंद अधिक रुपियों के लालच में बेंच कर उन देशों को मजबूती और सबलता देते हैं जो कहीं न कहीं हमारे देश के बिगड़ते हालत के लिए जुम्मेदार हैं ! आज युवा भौतिक खुशियों की चाहत में पलायन तो करता है लेकिन शयद उस वक़्त भी अपने घर की और नहीं देख पता जब बीमार माँ अपने बच्चों का नाम पुकारती है, जब मरे हुए पिता का पार्थिव शारीर शमशान में लकडियों पर होता है लेकिन अपने बेटे के हाथ की अंतिम अग्नि को तरसता है, जब देश मुश्किल में होता है और हमारे देश की प्रथिभायें दुसरे देश के ऎटम बम बनती हैं! आखिर क्यों तमाम डॉ.,बेज्ञानिक,इंजीनियर........जैसी तमाम प्रतिभाएं पलायन की सोच लेकर चंद अधिक रुपियों की खातिर सब त्याग कर किसी दुसरे देश में आशियाना तलाशती हैं ! इसमें उनकी सोच गलत है या हमारे देश की व्यवस्ता की कमी ..........आखिर क्यों प्रथिभायें पलायन पर मजबूर हैं ! आखिर क्यों..........?

Wednesday, August 5, 2009

***ग़ज़ल बीती***

जब कभी प्यार की बात हो शौक में,
अपनी पलकों को थोडा झुका लीजिये !

जब कोई चेहरा दिल को सताने लगे,
आईने से दूरी बड़ा लीजिये !

धड़कने साथ हो पर परायी लगे,
मुस्कुराने का फिर तुम मज़ा लीजिये !

जब कदम दिल की बातों को सुनने लगे,
बस आँखों से बातें किया कीजिये !

जब कोई रोज़ खूआबों में आने लगे,
छोडिये नींद प्यार का मज़ा लीजिये !

बेचेनी जब हद से गुजरने लगे,
बीते लम्हों को तुम गुनगुना लीजिये !

हो अगर तुम मोहोब्बत के इस दौर में,
प्यार से ये ग़ज़ल गुनगुना लीजिये !!