Friday, September 11, 2009

**नज़्म**

नज़्म बनती रही, लोग पड़ते रहे,
तुम समझती रही और में लिखता रहा!

सफ़र चलता रहा जिंदगी मौत का,
तुम भी रोती रही मैं भी रोता रहा!

खलल होता रहा हर इक साँस से,
तुम पिघलती रही और में जलता रहा!

मेरा नाम लिख तुम मिटती रही,
आंख बहती रही तुमने कुछ न कहा!

ज़िक्र होता रहा इश्क की बात का,
तुम न करती रही और में तड़पता रहा !

छुपा कर दिल में हर इक राज़ को,
तुम तो चलती रही पर मैं ठहरा रहा !

नज़्म बनती रही, लोग पड़ते रहे,
तुम समझती रही और में लिखता रहा!